उसके पहलू से लग के चलते हैं / जॉन एलिया

 

उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं

मै उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलतें हैं

artistic blossom bright clouds
Photo by Pixabay on Pexels.com

वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ्फ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं

for more dosti shayari click here

अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़
वो बरसों बाद जब मुझ से मिला है
भला मैं पूछता उससे तो कैसे
मताए-जां तुम्हारा नाम क्या है?

साल-हा-साल और एक लम्हा
कोई भी तो न इनमें बल आया
खुद ही एक दर पे मैंने दस्तक दी
खुद ही लड़का सा मैं निकल आया

दौर-ए-वाबस्तगी गुज़ार के मैं
अहद-ए-वाबस्तगी को भूल गया
यानी तुम वो हो, वाकई, हद है
मैं तो सचमुच सभी को भूल गया

रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निबाहनी होती
मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती

दिल में जिनका निशान भी न रहा
क्यूं न चेहरों पे अब वो रंग खिलें
अब तो खाली है रूह, जज़्बों से
अब भी क्या हम तपाक से न मिलें

शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी
नाज़ से काम क्यों नहीं लेतीं
आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है
तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेतीं||

for more love shayari clickhere